Tuesday, May 21, 2013

बालिग की सहमति से यौन संबंध बलात्कार नहीं


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि बालिग महिला मित्र की सहमति से यौन संबंध स्थापित करने वाले व्यक्ति पर बलात्कार के आरोप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता बशर्ते उसकी महिला मित्र से विवाह करने की मंशा हो।
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि यदि लड़की प्रेमवश यौन संबंध स्थापित करती है लेकिन किन्हीं कारणवश उनका विवाह नहीं हो सका तो ऐसा व्यक्ति बलात्कार का आरोपी नहीं हो सकता।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘अदालत को इस तथ्य का परीक्षण करना चाहिए कि क्या आरोपी ने शुरू में विवाह का झूठा वायदा किया था और क्या यौन संबंध के स्वरूप और परिणाम को पूरी तरह समझते हुये इसकी सहमति दी गयी थी। ऐसा भी हो सकता है जहां पीड़ित आरोपी के प्रति अपने प्रेम और आसक्ति के कारण यौन संसर्ग के लिये तैयार हो गयी हो और आरोपी द्वारा गलत तस्वीर पेश करने के कारण ऐसा नहीं हुआ हो या विवाह करने की मंशा रखने के बावजूद आरोपी अपरिहार्य कारणों या परिस्थितियां उसके नियंत्रण से बाहर होने की वजह से उससे विवाह करने में असमर्थ रहा हो। ऐसे मामलों पर अलग दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।’
न्यायाधीशों ने कहा कि बलात्कार और सहमति से यौन संबंध स्थापित करने में अंतर है और एक आरोपी को बलात्कार के अपराध में सिर्फ उसी स्थिति में दोषी ठहराया जा सकता है यदि अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि उसकी दुर्भावनापूर्ण और गुप्त मंशा थी।
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही युवक को बलात्कार के जुर्म में सात साल की सजा सुनाने के निचली अदालत के निर्णय को सही ठहराने वाले पंजाब एवं हरियाणा  उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया।
न्यायालय ने यह तथ्य जानने के बाद बलात्कार के आरोपी को बरी कर दिया कि उसकी मंशा अपनी 19 वर्षीय महिला मित्र से विवाह करने की थी और ऐसा कोई सबूत नहीं है कि उसका वायदा झूठा था।
न्यायालय ने कहा, ‘पर्याप्त साक्ष्य होने चाहिए कि अमुक समय अर्थात शुरूआती दौर में, आरोपी की पीड़ित से विवाह करने के वायदे पर कायम रखने की कोई मंशा नहीं थी। कुछ परिस्थितियां भी हो सकती हैं जब बेहतरीन मंशा रखने के बावजूद एक व्यक्ति अनेक अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण पीड़ित से विवाह करने में असमर्थ होता है।’
न्यायालय ने कहा, ‘बलात्कार और सहमति से यौन संबंध में स्पष्ट अंतर है और इस तरह के मामले में अदालत को बहुत सावधानी से तथ्यों का परीक्षण करके पता लगाना चाहिए कि क्या आरोपी वास्तव में पीड़ित से शादी करना चाहता था या दुर्भावनापूर्ण मंशा थी और सिर्फ अपनी वासना की पूर्ति के लिये ही उसने झूठा वायदा किया था क्योंकि बाद वाली स्थिति छल और कपट के दायरे में आती है।’


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