Thursday, May 30, 2013

नक्सलियों ने छोड़ा, अपनों ने किया घायल

पिछले डेढ़ दशकों से नक्सलप्रभावित दक्षिण छत्तीसगढ़ से एकमात्र कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा को अपनों ने ही घायल कर दिया। उनका पहला कसूर यह है कि वे धुर नक्सल इलाके से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। उनका दूसरा कसूर यह है कि 25 मई को दरभा घाटी में कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले में नक्सलियों ने उनकी जान बख्श दी। उनका तीसरा और सबसे बड़ा कसूर यह है कि वे अजीत जोगी के आदमी हैं। हमले के बाद से ही सच्चे-झूठे आरोप लगाकर उन्हें एक कायर, सेटिंगबाज तथा षडयंत्रकारी नेता के रूप में पेश किया जाता रहा है। इस बारे में खुद लखमा क्या कहते हैं...
  बड़े नेताओं से फुर्सत मिले तो कोई मुझसे भी बात करे और मेरी बात सुने और छापे। मुझे नक्सलियों ने क्यों छोड़ दिया, मैं खुद नहीं जानता। मैं सलवा जुडूम के दौरान निरीह आदिवासियों पर किए गए अत्याचार का विरोध करता रहा हूँ। जुडूम ने खुद मेरे परिवार के लोगों पर अत्याचार किये हैं। यही एकमात्र वजह हो सकती है। पर यह मेरा आकलन है। असली कारण तो नक्सली ही बता सकते हैं। काफिले में 124 लोग थे। फायरिंग में 29 मारे गए। कुछ लोगों को नक्सलियों ने ढूंढ-ढूंढ कर मार दिया। क्या यह सवाल बाकी बचे सभी लोगों से पूछा गया?
लोग कहते हैं कि मेरी नक्सलियों से सेटिंग है। मेरे चुनाव क्षेत्र में 193 पोलिंग बूथ हैं। मैं केवल 100 में ही जा पाता हूँ। मैं केवल सड़क-सड़क घूमता हूँ। कई इलाके ऐसे हैं जहां मैं बरसों से नहीं गया। जगरगुंडा गए तो मुझे 15 साल हो गए। नक्सली हमलों में मारे गए कवासी भीमा, मड़का मूंगा, कवासी माचा, कवासी मुका, मड़काम सुक्का मेरे रिश्तेदार थे। नक्सलियों ने मेरे बड़े भाई कोवासी हडका का सबकुछ लूट लिया। दूसरी बात, यदि नक्सलियों से मेरी सेटिंग है तो उन्होंने मनीष कुंजाम को क्यों छोड़ दिया? वह तो मेरा धुर विरोधी है।
लोग सवाल उठा रहे हैं कि मुझे नक्सली जमावड़े की सूचना क्यों नहीं मिली। मेरे से बड़ा सूचना नेटवर्क मेरे चाचा महेन्द्र कर्मा का था। उनका नेटवर्क पुलिस से भी बेहतर था। जब उन्हें सूचना नहीं मिली तो मुझे कैसे मिलती? वैसे भी जहां यह हमला हुआ वह न तो मेरा इलाका है, न मेरा विधानसभा क्षेत्र। वहां तो लोग शायद मुझे जानते भी नहीं हैं।
मेरा घर, मेरी गाड़ी, मेरा ट्रैक्टर सब कुछ लोन पर है। कभी कभी किस्तें भी समय पर नहीं पहुंचतीं और लोग कहते हैं कि मैं नक्सलियों को पैसे देता हूँ। कहां से लाता हूँ? मैं कमीशन नहीं खाता। पार्टनरशिप में ठेकेदारी नहीं करता। जिसके जो मन में आ रहा है, बोल रहा है।
मैं खामोश नहीं रहता। मैने नक्सलियों के खिलाफ प्रत्येक मंच पर बोला है। यह बात और है कि बड़े नेताओं के आगे मेरी बातें दब गर्इं। मैने सलवा जुडूम के अत्याचार के बारे में भी बोला है। जुडूम ने गगनपल्ली को तीन बार जला दिया। अदमपलली, गोरखा, सुपिडतोंग, रोटेगट्टा, मईता, बंडाटेटरा, अरगट्टा, मनीगोंटा आदि गांव जुडूम ने जला दिये। चार, इमली बेचने वाले आदिवासियों को घसीटकर जुडूम शिविरों में ले जाया गया।
मैं मुर्गा लड़ाने वाला
मैं स्कूल नहीं गया हूँ। मेरे को बात करने का तरीका नहीं आता। ताड़ी काटते, मुर्गा लड़ाते हुए बड़ा हुआ हूँ। बोलता हूं तो धमकाने जैसा लगता है। सीधी सपाट भाषा बोलता हूँ। गलत को गलत बोलता हूँ। अजीत जोगी मेरे नेता हैं इसलिए उनके विरोधी मेरे भी विरोधी हैं। दरभा घाटी हमले के बाद सरकार की बोलती बंद हो गई थी। रमन सरकार की हैट्रिक वाले पोस्टर फीके पड़ गए थे। ऐसे समय में लोगों ने मुझे और जोगी जी को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सरकार को राहत मिल गई। यही सेटिंग है। पर लोग समझें तब ना....

(कवासी लखमा द्वारा हरिभूमि के विशेष संवाददाता याज्ञवल्क्य को दिए साक्षात्कार के आधार पर) .. Back to Sunday Campus

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