नई दिल्ली। भारतीय खाद्य निगम के परिसरों में गोदामों के अभाव में आसमान तले पड़े गेहं का अगर निर्यात कर दिया जाएं तो सरकार की झोली में 25 हजार करोड़ रूपये आ सकते हैं। देश के कई राज्यों में खुले में पड़े यह गेहं करीब एक करोड़ 70 लाख टन के है। एसोसिएटिड चैम्बर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (एसौचेम) के एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है। साथ ही दीर्घावधि कृषि निर्यात नीति के हक में राय व्यक्त की गई है। कहा गया है कि 50 अरब डॉलर के महत्वाकांक्षी कृषि निर्यात लक्ष्य को बनाये रखा जाएं क्योंकि इससे चालू खाते के घाटे को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि 2012-13 में भारत ने 33.54 अरब डॉलर के कृषि और संबद्ध उत्पादों का निर्यात किया था
उद्योग मंडल एसौचेम के अध्ययन ‘कृषि निर्यात: ऊंची संभावना और कारर्वाई एजेंडा’ में इस बात का जिक्र है कि कृषि निर्यात में सॉफ्टवेयर एवं सेवा निर्यात के बाद दूसरा सबसे अधिक विदेशी आमदनी का स्रोत बनने की क्षमता है। अध्ययन में कहा गया है कि उंचे कृषि निर्यात से फसल विविधीकरण, फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायता मिलेगी साथ ही किसान भी वैश्विक स्तर पर मांग को पूरा करने के लिए विशेष फसलों के उत्पादन पर धान देंगे।
एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत ने कहा है कि 2013-14 के लिए सरकार को कृषि निर्यात का लक्ष्य 50 अरब डॉलर रखना चाहिए और 2017 तक इसे बढ़ाकर 70 अरब डॉलर तक कर देना चाहिए। इस कदम से सरकार को चालू घाटा नियंत्रित करने में आसानी होगी।
धूत का कहना है कि पंजाब में 4415 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक गेहंू का उत्पादन देखने में आता है जबकि बिहार में यह आंकड़ा 1946 किलोग्राम पर सिमट जाता है। जबकि बिहार जल संसाधन और बरसात के मामले में पंजाब से बेहतर स्थिति में है। उन्होंने कहा कि गुजरात की तर्ज पर सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों को पूर्वी राज्यों में अपनाने की जरूरत है।
एसोचैम के अध्ययन में इब बात पर बल दिया गया है कि कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और उत्पादन बढ़ाने के लिए लंबी अवधि के निवेश पर ध्यान देने की जरूरत है।
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