Thursday, May 2, 2013

सीबीआई जांच में राजनीतिक दखल कोई नई बात नहीं


भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कोयला आबंटन में कथित घोटाले की जांच में सरकारी दखल के मामले पर सीबीआई को आड़े हाथों लिया है। न्यायालय ने स्पष्ट करने को कहा है कि क्या जांच एजेंसी सीबीआई का मैनुअल इसकी इजाजत देता है कि इस तरह के मसौदे कानून मंत्री, जो किसी पार्टी के नेता भी होते हैं, के साथ साझा किए जाएं? बहस फिर तेज हो गई है कि सीबीआई कितनी स्वायत्त संस्था है और उसमे राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता क्यों हो? सीबीआई के दो पूर्व संयुक्त निदेशकों की बेबाक राय।

एनके सिंह

आपातकाल के बाद इंदिरा गाँधी को गिरफ्तार किया और सेंट किट्स मामले की जांच की। अगर सच कहूँ तो सीबीआई का राजनीतिकरण इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री काल में शुरू हुआ था। मेरी नजर में उनसे पहले के प्रधानमंत्री और सरकारें आम तौर पर जांच एजेंसी के काम-काज में दखल नहीं देती थीं। सरकार के खिलाफ मुकदमा जीतने के बाद एनके सिंह ने किताब भी लिखी।
इंदिरा गाँधी के सत्ता में रहते ही डी सेन नामक व्यक्ति पूरे छह साल तक इस एजेंसी के निदेशक पद पर आसीन रहे। मेरा अपना अनुभव रहा सेंट किट्स मामले की जांच के दौरान जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस और राजीव गांधी का साथ छोड़ा तो उसके तुरंत बाद कैरेबियाई देश सेंट किट्स में एक फर्जी बैंक खाता खोला गया और बेशुमार पैसे जमा कर दिए गए। उसके बाद कहा गया कि वो रकम वीपी सिंह की है और उनके पुत्र के नाम पर जमा की गई है। उस मामले की जांच मेरे नेतृत्व में हुई और उसमे कई बार राजनीतिक दखल की कोशिश हुई।
जांच में हस्तक्षेप का प्रयास किया गया जिसमें आरके धवन, चंद्रास्वामी और सतीश शर्मा इत्यादि लोग शामिल थे। जब मैं नहीं माना तब आनन-फानन में मेरा तबादला कर दिया गया और मुझे सीबीआई से ही बाहर कर दिया गया।
मैं इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गया और मैंने कहा कि ये राजनीति से प्रेरित तबादला है। नतीजा ये हुआ कि सेंट किट्स मामला 6 महीने में ही खत्म कर दिया गया और अगर ऐसा नहीं होता तो जो लोग इसमें शामिल थे वे आगे चल के पकड़ लिए जाते।
ऐसा ही कुछ बोफोर्स मामले में हुए जब ओतावियो क्वात्रोची को न सिर्फ देश से बाहर जाने दिया गया बल्कि लंदन में सील किया गया उनका बैंक खाता भी खोल दिया गया।

केएस ढिल्लन

मेरे हिसाब से भारत में पुलिस और उसकी जवाबदेही अभी भी उसी राह पर चल रही है जैसी ब्रिटिश राज के दौरान थी। केएस ढिल्लन के अनुसार जगन्नाथ मिश्र ने जांच प्रभावित करने का प्रयास किया था। भारत में ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में आलम यही है कि जांच एजेंसियां सरकारों को रिपोर्ट करती हैं।
भारत जैसे देश में जांच एजेंसियां आखिरकार सरकारों के बहाने राजनीतिक दलों को रिपोर्ट करने लगीं, जिनमें निजी हितों का मामला प्राथमिकता लेने लगा। मिसाल के तौर जब मैं सीबीआई में संयुक्त निदेशक था तब बिहार में बॉबी नाम की एक नर्स का कत्ल हो गया था। जगन्नाथ मिश्र उन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री थे और विधान सभा के स्पीकर भी उन्ही की कॉंग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता थे।
दोनों में कत्ल को लेकर एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश जारी थी और एक दूसरे को फंसाने के प्रयास तेज थे। खास बात ये भी थी कि राज्य की पुलिस मुख्यमंत्री का पक्ष ले रही थी और स्पीकर महोदय अकेले पड़ रहे थे।
जब जांच में बात हद से आगे निकल गई तो ये केस मेरे सुपुर्द किया गया। तमाम राजनीतिक हस्तक्षेप को किनारे करते हुए बड़ी मुश्किल से किसी तरह हमारी टीम ने इस केस को सुलझाया।
ये उदाहरण जरूरी इसलिए है क्योंकि सीबीआई या जांच एजेंसियों के कामकाज में न सिर्फ बड़े मामलों में बल्कि छोटे मामलों में भी काफी राजनीतिक हस्तक्षेप के मामले सामने आए हैं।

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