Saturday, July 13, 2013

फुटबॉल सीते बहता है इन बच्चों का लहू

पांच से पंद्रह साल के बच्चे छोटी-छोटी स्टूलों पर गर्दन झुकाए बैठे तन्मयता के साथ कुछ कर रहे हैं। एकाएक एक बच्चे की कराह निकल जाती है। उसकी उंगली में शायद सुई चुभ गई है। इससे पहले ही खून की कोई बूंद टपके वह उंगली को मुंह में दबा लेता है। तत्काल एक दूसरा बच्चा चूना लेकर आता है और उसकी उंगली पर दबाकर बांध देता है। इस तरह की चोटें यहां आम हैं। कभी तागे से उंगलियां कट जाती हैं तो कभी सुई से छलनी हो जाती हैं। ये है फुटबाल उद्योग का वह काला सच जिसे हममें से शायद बहुत कम लोग जानते हैं। इस उद्योग में बच्चे ही झोंके जाते हैं क्योंकि उनके हाथ छोटे, नाजुक और लचीले होते हैं।
मेरठ के जानी ब्लाक के गांव नंगला कुम्भा की रजिया सुल्तान को मलाला युसुफजई पुरस्कार देते ही यह कहानी दुनिया के सामने आ गई। रजिया खुद भी बचपन में फुटबाल सीला करती थी। वह बताती है कि फुटबाल सीलने वाले बच्चों की न केवल उंगलियां समय के साथ टेढ़ी हो जाया करती हैं बल्कि गर्दन झुकाए काम करने की वजह से रीढ़ की हड्डी में भी रोग हो जाता है। बाल मजदूरों को शासन की निगाहों से छिपाने के लिए बंद कमरों में काम करना होता है। जहां खुली हवा तो होती ही नहीं बल्कि रोशनी भी इतनी कम होती है कि काम करने वाले बच्चों की निगाहें कमजोर हो जाती हैं।
रजिया भी शायद यहीं घुटघुट कर बड़ी हो जाती अगरचे दिल्ली की एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन का यहां आगमन नहीं होता। बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी यहां आए। उन्होंने और बच्चों के साथ रजिया को भी शिक्षा के लिए प्रेरित किया। रजिया ने अपने गांव में बाल पंचायत का गठन किया और उसकी अध्यक्ष बन गई। धीरे धीरे गांव के सभी बच्चे स्कूल जाने लगे। मलाला ने अपने आंदोलन का विस्तार किया और आज आधा दर्जन गांवों बाल मित्र गांव बन गए हैं। इन गांवों में अब कोई बाल मजदूर नहीं है।
फरमान की इस बेटी ने यूपी के दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर शिक्षा के अधिकार की अलख जगाई। वह नेपाल भी गई तथा वहां बालमजदूरी रोकने के प्रयास किए। प्राइमरी शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से प्राप्त कर उसने जूनियर हाई स्कूल तक की शिक्षा सिवाल हाई स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद उसने हाई स्कूल वीटी पब्लिक स्कूल से किया। अब वह बारहवीं में कुराली स्थित एलटीआर पब्लिक स्कूल की छात्रा है।

सत्यार्थी ने आगे बढ़ाया

मलाला पुरस्कार के लिए रजिया सुल्तान का नाम बचपन बचाओ आन्दोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी ने ही प्रस्तावित किया था। करीब तीन माह पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष दूत गॉडर्न ब्राउन भारत आए थे। उस समय बचपन बचाओ आन्दोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी ने उन्हें रजिया सुल्तान के बारे में बताया था। ब्राउन ने रजिया सुल्तान के समाजिक कार्यों का वीडियो लिया था। इसके बाद कैलाश सत्यार्थी ने भारत की और से मलाला सम्मान के लिए रजिया का नाम भेजा।
मिला सम्मान पर रह गया अफसोस
रजिया को संयुक्त राष्ट्र का पहला मलाला युसूफजई पुरस्कार दिया गया। पर वह संयुक्त राष्ट्रीय संघ के न्यूयार्क स्थित मुख्यालय के सभागार में विशेष शिक्षा दूत व ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गॉडर्न ब्राउन से मलाला पुरस्कार प्राप्त करने से वंचित रह गई। पासपोर्ट और वीजा की दिक्कतों के चलते पुरस्कार प्राप्त करने के लिए वह न्यूयार्क नहीं जा पाई। हालांकि, इस अवसर पर रजिया का भाषण पढ़कर सुनाया गया। उसने कहा कि बाल मजदूरी की पूर्ण समाप्ति के बगैर देश के बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिल पाना मुश्किल है। जब तक हर बच्चें को मुफ्त उपयोगी और अच्छी शिक्षा मुहैया नहीं करवाई जाती तक तक बाल मजदूरी भी नहीं रूकेगी। इसके लिए केन्द्र सरकार बाल मजदूरी को पूरी तरह से रोकने के लिए कानून संसद में पास करें।

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