Tuesday, July 9, 2013

कंगाली दूर करने में पिछड़ गया भारत


  •  दुनिया का हर 8वां व्यक्ति भूखे पेट सो रहा


नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1990 से लेकर 2015 तक अत्यंत गरीबों यानी एक डालर प्रतिदिन पर गुजारा करने वाले लोगों की संख्या आधी करने का लक्ष्य रखा था। भारत जैसे कुछ देशों को छोड़कर विश्व ने सहस्त्राब्दि विकास का यह लक्ष्य समय से पहले ही हासिल कर लिया है। इसके बावजूद दुनिया में एक अरब 20 करोड़ लोग अब भी गरीबी का अभिशाप झेलने को मजबूर हैं। हर आठवां व्यक्ति भूखे पेट सोता है।
सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य 2013 पर संयुक्त राष्ट की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में सबसे खराब स्थिति भारत की है जबकि चीन ने असाधारण प्रगति की है। भारत को छोड़कर दक्षिण एशिया के सभी देशों ने अत्यंत गरीबों की संख्या आधी करने के लक्ष्य को समय से पहले ही हासिल कर लिया। हालांकि संयुकत राष्ट्र को उम्मीद है कि भारत भी तय समय में लक्ष्य प्राप्त कर लेगा।
वर्ष 1990 में चीन में अत्यंत गरीबी की दर 60 प्रतिशत थी जबकि भारत में 1994 में यह 49 प्रतिशत थी। वर्ष 2005 में भारत में यह दर मात्र 42 प्रतिशत पर पहुंची जबकि इसी वर्ष चीन में यह 16 प्रतिशत पर आ गई। वर्ष 2010 में भारत में यह दर 33 प्रतिशत पर पहुंची जबकि चीन में यह कम होकर 12 प्रतिशत रह गई।
लक्ष्य हासिल करने के मामले में सबसे ज्यादा खराब स्थिति उप सहारा अफ्रीकी देशों की है। यह अकेला ऐसा क्षेत्र हैं जहां 1990 से 2010 के बीच अत्यंत गरीबों की संख्या बढ़Þी है। यहां 1990 में कंगाली की हालत में जीने वालों की संख्या 29 करोड़ थी जो 2010 में बढ़Þकर 41 करोड़ 40 लाख हो गई।
विकासशील देशों में अत्यंत गरीबों का प्रतिशत 1990 के 47 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2010 में घटकर 22 पर आ गया है। संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों की बदौलत इन देशों के करीब 70 करोड़ लोगों को कंगाली की स्थिति से बाहर निकाला जा चुका है। अंतरराष्ट्रीय संस्था के अनुसार सबसे ज्यादा गरीबी उन देशों में हैं जहां शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति खराब होने के कारण रोजगार की स्थिति चिंताजनक है तथा प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो गए हैं या जहां संघर्ष, कुशासन और भ्रष्टाचार व्याप्त है।

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