Sunday, April 28, 2013

सिर्फ सलाह दे सकती है AICTE


उच्चतम न्यायालय का फैसला

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) की भूमिका सिर्फ सलाह देने की है और उसे विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों की स्वीकृति जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि विश्वविद्यालयों से संबद्ध कालेजों को अपने यहां एमबीए और एमसीए के पाठ्यक्रम शुरू करने के लिये तकनीकी शिक्षा परिषद से मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति वी गोपाल गौडा की खंडपीठ ने पार्श्वनाथ चैरीटेबल ट्रस्ट प्रकरण के पैराग्राफ 19 और 20 का जिक्र करते हुए कहा कि एआईसीटीई कानून और यूजीसी कानून के प्रावधानों के अध्ययन से स्पष्ट है कि विश्वविद्यालयों के संबंध में उसकी भूमिका सिर्फ सलाह देने और मार्गदर्शन करने वाली ही है। परिषद को ऐसा कोई अधिकार नहीं है जिससे वह विश्वविद्यालयों से संबद्ध कालेजों के लिए किसी प्रकार की मंजूरी दे सके।
न्यायालय ने कहा कि एमसीए तकनीकी शिक्षा है और इसलिए वह तकनीकी शिक्षा की परिभाषा के दायरे में आता है लेकिन इस पाठ्यक्रम के सुव्यवस्थित तरीके से संचालन और नियमन के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की भूमिका सिर्फ सलाह देने वाली है और इस पर अमल के लिए उसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को एक नोट ही देना होगा।
न्यायालय ने तमिलनाडु के विभिन्न कालेजों के साथ ही निजी कालेजों के प्रबंधकों के संगठन की अपील पर यह व्यवस्था दी। इस अपील में म्रदास उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गयी थी जिसमें कहा गया था कि हालांकि विश्वविद्यालयों को अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है लेकिन उनसे संबद्ध कालेजों के लिए ऐसा करना आवश्यक है। शीर्ष अदालत ने कहा कि संशोधित नियमों को संसद में पेश नहीं किए जाने से कानून की नजर में यह त्रुटिपूर्ण ही है। न्यायालय ने कहा कि एमबीए और एमसीए पाठ्यक्रमों के लिए एआईसीटीई से मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।

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