Thursday, June 6, 2013

एफएसडीसी को और ताकत का आइडिया खारिज

मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने ऐसे वक्त में फाइनैंशल स्टेबिलिटी और रेग्युलेशन में सरकार के ज्यादा रोल के लिए चल रहे कैंपेन की आलोचना की, जब दुनिया भर में सरकारें रेग्युलेटर्स को ज्यादा स्वायत्तता दे रही हैं। उन्होंने फाइनैंस मिनिस्टर की अगुवाई वाली फाइनैंशल स्टेबिलिटी एंड डिवेलपमेंट काउंसिल (एफएसडीसी) के रेग्युलेटर्स के बीच कोआॅर्डिनेटर होने के बजाय उसके वैधानिक रोल के आइडिया को खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा कि इस प्लान से कुछ भी हासिल नहीं होगा। इंडियन मर्चेंट्स चैंबर के कॉन्फ्रेंस में सुब्बाराव ने कहा, 'ऐसी सिफारिश की गई है कि सिस्टेमैटिक रिस्क से बचाने की एग्जेक्युटिव रिस्पॉन्सिबिलिटी एफएसडीसी बोर्ड के पास होनी चाहिए, जो दुनिया भर में क्राइसिस के बाद के ट्रेंड के उलट है। दुनिया भर में ऐसी बॉडीज को सिर्फ कोआर्डिनेशन और सिफारिश करने की जिम्मेदारी दी गई है।'
आरबीआई गवर्नर ने कहा, हमें इस बारे में सोचने की जरूरत है कि एफएसडीसी की जिम्मेदारियों को कोआॅर्डिनेशन बॉडी से बढ़कर ऐसी बॉडी का किया जाना चाहिए या नहीं, जिसके पास एग्जेक्युटिव फैसले लेने की अथॉरिटी हो? यूपीए सरकार रेग्युलेटर्स के बीच मतभेद खत्म करने की आड़ में पिछले तीन साल से ज्यादा रेग्युलेटरी पावर अपने हाथ में लेने की तरफ बढ़Þ रही है। जब प्रणव मुखर्जी फाइनैंस मिनिस्टर थे, तब एफएसडीसी नाम से रेग्युलेटर्स का एक अनौपचारिक पैनल बनाया गया था। अब इसे वैधानिक पावर के साथ स्थाई बनाने का प्रस्ताव है।

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