Thursday, June 6, 2013

RTE : सीबीएसई की पूछपरख, सीजी बोर्ड के लेवाल नहीं

भिलाई। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी निजी स्कूलों का कोटा खाली का खाली पड़ा है। खासकर सीजी बोर्ड के निजी स्कूलों में बहुत कम लोगों ने रुचि दिखाई है। लिहाजा इन स्कूलों में आरटीई के तहत आरक्षित सीटों में से आधे से अधिक सीटें आज भी खाली हैं। यही आलम रहा तो 30 जून के बाद भी 50फीसदी से अधिक सीटें खाली ही रह जाएंगी।
शहर की सीजी बोर्ड के स्कूलों में आरटीई के तहत इक्का-दुक्का ही प्रवेश हो सके हैं, जबकि सीबीएसई स्कूलों में भीड़ लगी है। यही हाल हिन्दी मीडियम स्कूलों का है, जहां कई स्कूलों में एक भी एडमिशन नहीं हो सका हैं। यही हाल सरकारी स्कूलों का है। पालक केवल उसी स्थिति में सरकारी स्कूलों में एडमिशन ले रहे हैं, जहां उनके नजदीक एक भी निजी स्कूल नहीं है।
शिक्षा का अधिकार पाने इस बरस भले ही पालकों ने ज्यादा रूचि दिखाई है, लेकिन अब भी जिले की निजी स्कूलों की 82 प्रतिशत सीटें खाली हैं। जिले का एक भी स्कूल ऐसा नहीं है, जिसकी 25 प्रतिशत सीट भरी हों। प्रवेश की यही रफ्तार रही तो 30 जून तक मुश्किल से 30 प्रतिशत एडमिशन हो पाएगा।
जिलेभर में 822 बच्चों को एडमिशन देने के बाद भी अधिकतम स्कूलों में सीटें खाली हैं। पिछले तीन बरस की तरह इस वर्ष भी 25 प्रतिशत सीटों को भरने का टारगेट इस वर्ष भी अधूरा ही रहेगा। इस साल नर्सरी और पहली दोनों में एडमिशन देने की वजह से बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है, जबकि पिछले बरस 30 जून तक सिर्फ 903 बच्चों को ही प्रवेश मिल सका था। वर्ष 2012-13 में जिलेभर के निजी स्कूलों में कुल 2399 सीट गरीब बच्चों के लिए आरक्षित थी, लेकिन इन सीटों की एवज में मात्र 37.6 प्रतिशत बच्चों ने ही एडमिशन लिया था।
पिछले बरस के मुकाबले इस बार गरीब बच्चों के लिए स्कूलो में कुल 2126 सीट का इजाफा हुआ है, लेकिन इसके एवज में अब तक मात्र 822 बच्चों को प्रवेश मिल सका है। अगर प्रवेश का प्रतिशत देखा जाए तो मात्र 18 प्रतिशत सीट ही आरटीई के तहत भर पाई हैं।

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