- टीन टप्पर के फर्नीचर कबाड़खाने में
- सीएसआईडीसी ने कराई करोड़ों की बर्बादी
छत्तीसगढ़ ने पिछले 8-10 सालों में तेजी से तरक्की की है। इस अवधि में सेटिंग मास्टरों ने खूब कमाई की है और लाल हो गए हैं। बात चाहे विवादित जमीनों की हो या फिर स्कूलों की सप्लाई की, हर जगह सेटिंग से वारे न्यारे हुए हैं। ताजा उदाहरण स्कूल फर्नीचरों का है।
जून का महीना शुरू हो गया है और जल्द ही स्कूल खुलने वाले हैं। अधिकांश स्कूलों में फर्नीचर के नाम पर टीन टप्पर का कबाड़ सजा हुआ है। हाईस्कूलों का भी हाल बुरा है। पिछले साल जुलाई अगस्त में स्कूल के प्रधानपाठकों से फर्नीचर की रिक्वायरमेंट मंगवाई गई थी। डीईओ कार्यालय के जरिए आंकड़े जुटाए गए थे। पर साल बीत गया फर्नीचर नहीं पहुंचे। सत्र आरंभ में कुछ फर्नीचर पहुंचा था जो जल्द ही कबाड़ में तब्दील हो गया।
फर्नीचर व्यवसाय से जुड़ लोग बताते हैं कि स्कूलों को फर्नीचर की आपूर्ति सीएसआईडीसी के जरिए होती है। जिनका वहां पंजीयन नहीं है उन्हें काम नहीं मिलता। वहां केवल सेटिंगबाजों की चलती है। सेटिंगबाज वहां से काम निकाल लाते हैं। इसमें बड़े पैमाने पर सेटिंग होती है। सीएसआईडीसी के अफसरों की मुट्ठी गर्म करने के बाद फर्नीचर बनाए जाते हैं। फिर हेडमास्टर से लेकर डीईओ तक को खुश करना पड़ता है। लगभग आधी रकम इसी में खर्च हो जाती है। थोड़ा मुनाफा अपने लिये रखते हुए बची खुची रकम से फर्नीचर बनाए जाते हैं।
लिहाजा ये फर्नीचर 18 के बजाय 22-24 गेज की शीटों से बनते हैं। इसपर वेल्डिंग भी टिकती नहीं। जरा सा धक्का लगा कि टांगे खुल जाती हैं। बैलेंस बिगड़ने के बाद फर्नीचर को स्टील स्क्वायर पाइपों में बंटते देर नहीं लगती।
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